" प्रकृति ने होली रच डाली
कहीं पे केशर कहीं पे लाली
उमड़ घुमड़ मुस्काता है मन
पिय संग होली हुयी निराली "
विरह का यह जोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
सुबह में तेरा दरस है
जी को ये इतना हरस है
साँझ को तेरी प्रतिक्छा
तुझी से हर भोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
द्वार पर दस बार आती
तुझे न इक बार पाती
कोई देखे तो लजाती
धक् ह्रदय से लौट जाती
भिगो नैना कोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
कैसे ये तुझको बताऊँ
आई पीहर को अकेली
इक किनारे इकल बैठी
खोजती हूँ ये पहेली
आओगे ले जाने जल्दी
हो रही हूँ विभोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
भाल भभूत हे! भस्मीभूतहे! शिखर चन्द्र, हें! तपस तंद्रहे! बाम अंग में शैल सुताकरुनानिधान, तू योगरताहे! हरे! पितु गणेश बालकहे! दुःख हर्ता तुम जग पालकहे! सिद्धयोग हे! महारथीहे! दानवीर हे! सती-पतिहे! विषपायी हे! अविनाशीवर देते अतुल, खुद वनवासीइतना ही वर मुझको देनाभारति माँ के दुःख हर लेनाधन-धान्य प्रगति से भर देनाफिर पूजा का अवसर देनाहे ! भारत भू के धन्य देवये भू समृद्ध रहे सदैव