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शुभ-भ्रमण
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27 मार्च 2011
20 मार्च 2011
पिय संग होली
" प्रकृति ने होली रच डाली
कहीं पे केशर कहीं पे लाली
उमड़ घुमड़ मुस्काता है मन
पिय संग होली हुयी निराली "
24 सित॰ 2010
शाम ढले घर रोज सुनो तुम आजाना
बड़ा निठुर हो चला
आज का ये जमाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
कही कडकती बिजली
दिल में घर करती है
लगातार बारिश
अनजाने डर करती है
तभी पड़ोसी का आकर
कुछ खबर सुनाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
समझ रही हूँ काम बिना
जीवन न चलता
पर दिल में रहती है
जैसे कोई विकलता
सुबह चाय पीकर
कुछ खाकर जो जाते हो
न मन का कुछ सुन पाते
न कह पाते हो
सुनो गावं की सडकें
टूटी व् जर्जर है
नदी की टूटी पुलिया
पानी से तर है
एकली राह पे सूनापन
है वक्त बेगाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
आज का ये जमाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
कही कडकती बिजली
दिल में घर करती है
लगातार बारिश
अनजाने डर करती है
तभी पड़ोसी का आकर
कुछ खबर सुनाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
समझ रही हूँ काम बिना
जीवन न चलता
पर दिल में रहती है
जैसे कोई विकलता
सुबह चाय पीकर
कुछ खाकर जो जाते हो
न मन का कुछ सुन पाते
न कह पाते हो
सुनो गावं की सडकें
टूटी व् जर्जर है
नदी की टूटी पुलिया
पानी से तर है
एकली राह पे सूनापन
है वक्त बेगाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
19 नव॰ 2009
अंतरतम में तुम.....!
अंतरतम में तुम ....!
ज्वाला बन के जले
लावा बन के गले
अंतरतम में तुम.....!
कुछ कहा अनकहा
हमने तुमने सहा
और जो शेष रहा
सपन धूसर धुले
अंतरतम में तुम.....!
हुयी मूक मन वानी
जो अब तक न निजानी
न हमने हार मानी
न तुमने जीत जानी
कैसे मिलते गले
अंतरतम में तुम.....!
वे मन के घन काले
बरसे बूंदों के छाले
घाव हमने ही पाले
तुम हृदय के भले
अंतरतम में तुम.....!
ज्वाला बन के जले
लावा बन के गले
अंतरतम में तुम.....!
कुछ कहा अनकहा
हमने तुमने सहा
और जो शेष रहा
सपन धूसर धुले
अंतरतम में तुम.....!
हुयी मूक मन वानी
जो अब तक न निजानी
न हमने हार मानी
न तुमने जीत जानी
कैसे मिलते गले
अंतरतम में तुम.....!
वे मन के घन काले
बरसे बूंदों के छाले
घाव हमने ही पाले
तुम हृदय के भले
अंतरतम में तुम.....!
वेदिका...१४/११/०७ २:४५ AM
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