हुयी है दस्तक दिलो- दिमाग में
देख लूँ बाहर कोई आया सा है
हर पहर ये साथ कोई चल रहा
कौन है जैसे मिरा साया सा है
देख लूँ बाहर कोई आया सा है
हर पहर ये साथ कोई चल रहा
कौन है जैसे मिरा साया सा है
छूटने पीछे लगे अपने मिरे
क्यूँ किसी इक गैर को पाया सा है
कोई छू न सके न देखे मुझे
किस तरह का ये खुदा साया सा है
काम उसको सोचने के सिवा क्या
वक्त चारों पहर का ज़ाया सा है
-वेदिका
सार्थक प्रयास
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हे
जवाब देंहटाएंइस कविता से मुझे वा लड़की दिखाई देती है जो अपने प्रियतम के बारे में सोच रही है...या तो वो जो अपने आने वाले अपने शरीर के ही हिस्से के बारे में सोच रही है.
जवाब देंहटाएंआप के ब्लॉग को की चर्चा तेताला पर की है देखे
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
http://tetalaa.blogspot.com/2010/02/blog-post_7641.html
जी हा हम आये थे !
जवाब देंहटाएंशेखर कुमावत
बेह्तरीन जज़्बात
जवाब देंहटाएंकाम उसको सोचने के सिवा क्या
जवाब देंहटाएंवक्त चारों पहर का ज़ाया सा है
उमदा अभिव्यक्ति शुभकामनायें
काम उसको सोचने के सिवा क्या
जवाब देंहटाएंवक्त चारों पहर का ज़ाया सा है ..
बहुत अच्छा लिखा ........ पर उनको सोचना वक़्त जाया करना नही .... वो छाए रहें तो आसानी से काट जाता है वक़्त .....
main to bas itnaa hi kah paaungaa....kyaa baat....kyaa baat.....kyaa baat......!!
जवाब देंहटाएंहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंBahut achchhi lagi....shubhkaamnaayen.
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