जिन्दगी कहाँ है तुम मुझको बता दो आजाओ
जो किया हो मैंने कि मुझको सजा दो आजाओ
जो जमी है वो नमी है ढेर सारी आँखों में
यूँ करो कि आज घर मुझको रुला दो आजाओ
ये करूं मै कुछ लिखूं फिर फिर मिटा दूँ रोज ही
मर मिटूँ कि पहले ही पढ़ के सुना दो आजाओ
बुरे होंगे हम मगर इसकी वजह हालात है
सुनो दिलबर जोर का थप्पड़ जमा दो आजाओ
आये दरवाजे पे मेरे, बिन पुकारे चल दिए
प्यार था जो कभी तो उसको निभा दो आजाओ
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8 अग॰ 2010
1 जुल॰ 2010
तू ही है हर ओर प्रियतम
विरह का यह जोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
सुबह में तेरा दरस है
जी को ये इतना हरस है
साँझ को तेरी प्रतिक्छा
तुझी से हर भोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
द्वार पर दस बार आती
तुझे न इक बार पाती
कोई देखे तो लजाती
धक् ह्रदय से लौट जाती
भिगो नैना कोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
कैसे ये तुझको बताऊँ
आई पीहर को अकेली
इक किनारे इकल बैठी
खोजती हूँ ये पहेली
आओगे ले जाने जल्दी
हो रही हूँ विभोर प्रियतम
तू ही है हर ओर प्रियतम
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