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27 मार्च 2011

"आजाओ ना मीत एक मुस्कान लिए "

आजाओ ना मीत
एक मुस्कान लिए


दीवारों पे जाले है
आँखों के घेरे काले है
रूखे मेरे निवाले है
बैठी हूँ आँखों में
भरी थकान लिए


द्वार पड़े वे झाड़
हटा दो
आओ निकट
दूरियां घटा दो
आजाओ आशाओं
भरा जहान लिए

बंद पड़ी खिड़की खोलोगे
ताज़ी सी खुशबु घोलोगे
धीरे से तुम जब बोलोगे
आँखे रो देंगी
तेरा ही ध्यान लिए


24 सित॰ 2010

शाम ढले घर रोज सुनो तुम आजाना

बड़ा निठुर हो चला
आज का ये जमाना
शाम ढले घर रोज
 सुनो तुम आजाना

कही कडकती बिजली
दिल में घर करती है
लगातार बारिश
अनजाने डर करती है
तभी पड़ोसी का आकर
कुछ खबर सुनाना
शाम ढले घर रोज
 सुनो तुम आजाना

समझ रही हूँ काम बिना
 जीवन न चलता
पर दिल में रहती है
जैसे कोई विकलता
सुबह चाय पीकर
कुछ खाकर जो जाते हो
न मन का कुछ सुन पाते
न कह पाते हो
सुनो गावं की सडकें
टूटी व् जर्जर है
नदी की टूटी पुलिया 
पानी से तर है
एकली राह पे सूनापन
 है वक्त बेगाना
शाम ढले घर रोज
 सुनो तुम आजाना



22 जुल॰ 2010

पिया अश्रु पूर दिए रास्ते ...!



मैंने पीहर की राह धरी 
पिया अश्रु पूर दिए रस्ते 
हिलके-सिसके नदियाँ भरभर
फिर फिर से बांहों में कसते...!

हाये कितने सजना भोले 
पल पल हंसके पल पल रो ले 
चुप चुप रहके पलकें खोले 
छन बैरी वियोग डसते  
फिर फिर से बांहों में कसते...!

वापस आना कह हाथ जोड़
ये विनती देती है झंझोड़ 
मै देश पिया के लौट चली 
पिया भर उर कंठ लिए हँसते
 फिर फिर से बांहों में कसते...!

19 नव॰ 2009

अंतरतम में तुम.....!

अंतरतम में तुम ....!
ज्वाला बन के जले
लावा बन के गले

अंतरतम में तुम.....!


कुछ कहा अनकहा
हमने तुमने सहा
और जो शेष रहा

सपन धूसर धुले

अंतरतम में तुम.....!

हुयी मूक मन वानी
जो अब तक न निजानी
न हमने हार मानी
न तुमने जीत जानी

कैसे मिलते गले

अंतरतम में तुम.....!

वे मन के घन काले
बरसे बूंदों के छाले
घाव हमने ही पाले

तुम हृदय के भले

अंतरतम में तुम.....!

वेदिका...१४/११/०७ २:४५ AM