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शुभ-भ्रमण

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शुभ-भ्रमण

19 नव॰ 2009

अंतरतम में तुम.....!

अंतरतम में तुम ....!
ज्वाला बन के जले
लावा बन के गले

अंतरतम में तुम.....!


कुछ कहा अनकहा
हमने तुमने सहा
और जो शेष रहा

सपन धूसर धुले

अंतरतम में तुम.....!

हुयी मूक मन वानी
जो अब तक न निजानी
न हमने हार मानी
न तुमने जीत जानी

कैसे मिलते गले

अंतरतम में तुम.....!

वे मन के घन काले
बरसे बूंदों के छाले
घाव हमने ही पाले

तुम हृदय के भले

अंतरतम में तुम.....!

वेदिका...१४/११/०७ २:४५ AM

1 टिप्पणी:

विचार है डोरी जैसे और ब्लॉग है रथ
टीप करिये कुछ इस तरह कि खुले सत-पथ