१.
हरिये हम सबके कलुष भाव हे! धनुष धारिये रघुनन्दन |दुःख औ' सुख में सम रह पाएं हम, तोड़ सकें भव के बंधन ||
२.
राम नगरिया ओरछा, बसी बेतवा तीर |
मिले पुख्य नक्षत्र में, जन-जन के रघुवीर ||
३.
धनुष उठाया राम ने, करने को संधान |
रामबाण को है सदा, उचित लक्ष्य का भान ||
४.
राम लखन औ' मैथिली, किसकी ये तस्वीर |
जन जन के मन रम रहे, कैसे हरते पीर ||
५.
चाप चढाया राम ने, किसकी हरने पीर |
न्याय मिलेगा कौन को, बदलेगी तक़दीर ||
६.
माता के आदेश से, लिया कौन सा जोग |
भ्रात संगिनी वन चले, कैसा ये संयोग ||
७.
हनुमत सा ना बाहुबल, नहीं राम सा तेज |
रामकथा की पंक्तियाँ, बड़ी सनसनीखेज ||
८.
धनुष तोड़ फिर राम ने, लिया स्वयंवर जीत |
९.
जन जन के हैं राम, कहे वेदिका सोरठा|
बसे ओरछा धाम, बना अवधपुर ओरछा||
गीतिका वेदिका
(सर्वाधिकार सुरक्षित गीतिका वेदिका)