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शुभ-भ्रमण

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शुभ-भ्रमण

12 जून 2010

जीते रहो!!!


हे! सहोदर!
तुम वही ना 
जो रहे उसी उदर में 
जिसमें कि मै  
उसी पदार्थ से पोषित
जिससे कि मै,  
फिर क्यों नहीं कोमल भावनाएं
तुम्हारी जैसे कि मेरी,
फिर क्यों कठोर शब्द 
तेरे क्यों नहीं मेरे,
क्यों मैं पल पल आहत तेरे बोलों से , 
क्यों जमता मेरा  दौड़ता लहू ,
क्यों ख़त्म होती मेरी खुशियाँ 
तेरे उपालम्भों  से, 
क्यों हर वक्त मुझे नीचा दिखाने की होड़, 
जबकि मै तेरी प्रतिस्पर्धी तो नहीं 
तब भी चाक होता ह्रदय जब 
तेरे इस व्यव्हार से माता - पिता भी 
रहते तेरे ही पाले में
 हे!  भाई! 
राखी के अवसर आते ही
आगे करते हाथ केवल इस हेतु 
की कोई तुम्हे ताना न दे 
की तेरी सूनी कलाई
झुकते तो नहीं कभी 
जिद्दी हठीले और छोटे उम्र में तुम
फिर भी ये आशीर्वचन तेरे ही लिए 
जीते रहो !!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. एक बेटी और बहन कि वेदना को बहुत सुन्दर शब्दों में ढाला है ...


    तब भी चाक होता ह्रदय जब
    तेरे इस व्यव्हार से माता - पिता भी
    रहते तेरे ही पाले में

    ये पंक्तियाँ विशेष कर अच्छी लगीं

    जवाब देंहटाएं
  2. गंभीर कविता है

    जवाब देंहटाएं
  3. की कोई तुम्हें ताना ना दे... गुड

    जवाब देंहटाएं

विचार है डोरी जैसे और ब्लॉग है रथ
टीप करिये कुछ इस तरह कि खुले सत-पथ