दूर तुमसे बस तुम्हारी जोह है
पास तेरे हूँ तो उहा-पोह है
क्यों नही मिलता कोई निर्णय सही
क्यों हमेशा है मुझे पीड़ा वही
क्यों तो लगता है कि यह तुमको नही
जिस तरह का हाँ मुझे बिछोह है
पास हूँ तेरे तो उहा-पोह है...!
कौन है मुझको कि देता ताड़ना
क्या बताऊँ क्या कि दिल का फाड़ना
किस तरह सहूँ विरह प्रताड़ना
विरहा औ वियोग का उर खोह है
पास हूँ तेरे तो उहा-पोह है...!
वेदिकाजी! बहुत ही सजग और जीवन रस से भरपूर रचनाएँ हैं आपकी ,इसके अलावा आप एक पशुप्रेमी भी हैं और भारतीय संस्कृति को बहुत अच्छे से संजो कर रखा है आपने ! आपका प्रोफाइल देखकर अच्छा लगा ! ऐसे ही लिखती रहिये ! और हाँ वक्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंक्यों नही मिलता कोई निर्णय सही
जवाब देंहटाएंक्यों हमेशा है मुझे पीड़ा वही . bahut sundar.