मैंने पीहर की राह धरी
पिया अश्रु पूर दिए रस्ते
हिलके-सिसके नदियाँ भरभर
फिर फिर से बांहों में कसते...!
हाये कितने सजना भोले
पल पल हंसके पल पल रो ले
चुप चुप रहके पलकें खोले
छन बैरी वियोग डसते
फिर फिर से बांहों में कसते...!
वापस आना कह हाथ जोड़
ये विनती देती है झंझोड़
मै देश पिया के लौट चली
पिया भर उर कंठ लिए हँसते
फिर फिर से बांहों में कसते...!
बहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना...!!
जवाब देंहटाएंBahut hi umda aur bhawapuran ha ji apki rachna. waha kya lekhti han aap ekdam sateek aur bahut kuch ha ise rachna me..piya ke hirdya ka spandan aur apni patni ke liya itna pyaar...bahut sundar..vedika ji.. Sukhi aur safal jiwan ki suvkamnayon ke satha. veda.
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