१.
हरिये हम सबके कलुष भाव हे! धनुष धारिये रघुनन्दन |दुःख औ' सुख में सम रह पाएं हम, तोड़ सकें भव के बंधन ||
२.
राम नगरिया ओरछा, बसी बेतवा तीर |
मिले पुख्य नक्षत्र में, जन-जन के रघुवीर ||
३.
धनुष उठाया राम ने, करने को संधान |
रामबाण को है सदा, उचित लक्ष्य का भान ||
४.
राम लखन औ' मैथिली, किसकी ये तस्वीर |
जन जन के मन रम रहे, कैसे हरते पीर ||
५.
चाप चढाया राम ने, किसकी हरने पीर |
न्याय मिलेगा कौन को, बदलेगी तक़दीर ||
६.
माता के आदेश से, लिया कौन सा जोग |
भ्रात संगिनी वन चले, कैसा ये संयोग ||
७.
हनुमत सा ना बाहुबल, नहीं राम सा तेज |
रामकथा की पंक्तियाँ, बड़ी सनसनीखेज ||
८.
धनुष तोड़ फिर राम ने, लिया स्वयंवर जीत |
९.
जन जन के हैं राम, कहे वेदिका सोरठा|
बसे ओरछा धाम, बना अवधपुर ओरछा||
गीतिका वेदिका
(सर्वाधिकार सुरक्षित गीतिका वेदिका)
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (04-08-2020) को "अयोध्या जा पायेंगे तो श्रीरामचरितमानस का पाठ करें" (चर्चा अंक-3783) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
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