नही तिमिरमय तू
तेरे उर का मै दीप सजन
धरो न यूँ मन में संताप
घुनो न यूँ अपने में आप
किस हेतु यह तेरा प्रलाप
सुनो अंकुर होकर इक बीज
पाता है निज यौवन
तेरे उर का मै दीप सजन
तू है दीपक मै हूँ बाती
तू मेरे संग मै संगाती
जन्मों से मै तेरी थाती
करो तुम बस इतना विश्वास
हम तुम है केवल दर्पन
तेरे उर का मै दीप सजन
विरह की चार घड़ी भर शेष
इक दूरी ये मुआ विदेस
मिटेगा उर में भरा कलेस
खोल दूंगी ये नयन मेरे
जायेगा ही ये तिमिर सघन
तेरे उर का मै दीप सजन