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शुभ-भ्रमण

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शुभ-भ्रमण

30 जुल॰ 2010

ले ले प्राण ऐसी पीर डाल के चले गये ...!

अभी तुम्हारी याद की
अभी तुम्हारी बात की
फिर बात तुमसे करने को है मन किया
क्यों मगर यूँ मुझको टाल के चले गये

तुम सुनो कि
पल तुम्हारे बिन कठिन बन जाता है
तुम सुनो कि
विरह कितने दुःख घने जन जाता है
कि नही फिर तुम
विजोगों में अकेली मै
ले ले प्राण ऐसी पीर डाल के चले गये ...!

कि मै जानूं
घना दुःख तुमको भी होए
कि मै जानूं
किबाड़े के पछीते मुंह छुपा रोये
"चलो" मुझसे कहा इतना मगर ले न गये
अकेले ही अकेले उर उबाल के चले गये...!

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक औरत के दर्द की अच्छी अभिव्यक्ति की है आपने ! बेहतरीन रचना !

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  2. kibaade ke pachheete....... graamyaanchal ke ye shabd man ko bhaa gaye.hindee kee jeevantataa men aise hee shabdon kaa yogadaan mahatvapoorna hai.....hamare blog 'bastar ki abhivyakti' men aapkaa swaagat hai. nimantran sweekaar keejiyegaa.

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विचार है डोरी जैसे और ब्लॉग है रथ
टीप करिये कुछ इस तरह कि खुले सत-पथ