मेरे साथी ....जिन्होंने मेरी रचनाओं को प्रोत्साहित किया ...धन्यवाद
शुभ-भ्रमण
नमस्कार! आपका स्वागत है यहाँ इस ब्लॉग पर..... आपके आने से मेरा ब्लॉग धन्य हो गया| आप ने रचनाएँ पढ़ी तो रचनाएँ भी धन्य हो गयी| आप इन रचनाओं पर जो भी मत देंगे वो आपका अपना है, मै स्वागत करती हूँ आपके विचारों का बिना किसी छेड़-खानी के!
शुभ-भ्रमण
शुभ-भ्रमण
20 दिस॰ 2009
20 नव॰ 2009
स्वाभिमान...!
जाऊं जहाँ जहाँ भी
मेरा साथ जाये स्वाभिमान
क्या कहाँ किस से कहूँ क्या,
ये बताये स्वाभिमान
ये नहीं की गर्व केवल
संग दया के भाव भी हों
कुछ समझ-दारी मिली हो
ऐसे कुछ सुझाव भी हो
किन्तु बोल वही बोलूं
जिनमे छलके सत्य ज्ञान
अगर हम अधिकार चाहें
याद हों दायित्व भी
न्याय, परउपकार आदि
गुणों पर स्वामित्व भी
स्व के इस सिंगार में
ये जेवरात सब महान
किन्तु इतना याद हो
की अहं चाहे बाद हो
न गिराए न गिराने दे
किसी को अपना मान
प्रति स्व के धर्म है ये
वेदिका वर्चस्व मेरा
चिरंजीवी हो यथा
यही हो सर्वस्व मेरा
बचा रखूं बना रखूं
अपनी नियति का विधान
जाऊं जहाँ जहाँ भी
मेरा साथ जाये स्वाभिमान
वेदिका...
19 नव॰ 2009
अंतरतम में तुम.....!
अंतरतम में तुम ....!
ज्वाला बन के जले
लावा बन के गले
अंतरतम में तुम.....!
कुछ कहा अनकहा
हमने तुमने सहा
और जो शेष रहा
सपन धूसर धुले
अंतरतम में तुम.....!
हुयी मूक मन वानी
जो अब तक न निजानी
न हमने हार मानी
न तुमने जीत जानी
कैसे मिलते गले
अंतरतम में तुम.....!
वे मन के घन काले
बरसे बूंदों के छाले
घाव हमने ही पाले
तुम हृदय के भले
अंतरतम में तुम.....!
ज्वाला बन के जले
लावा बन के गले
अंतरतम में तुम.....!
कुछ कहा अनकहा
हमने तुमने सहा
और जो शेष रहा
सपन धूसर धुले
अंतरतम में तुम.....!
हुयी मूक मन वानी
जो अब तक न निजानी
न हमने हार मानी
न तुमने जीत जानी
कैसे मिलते गले
अंतरतम में तुम.....!
वे मन के घन काले
बरसे बूंदों के छाले
घाव हमने ही पाले
तुम हृदय के भले
अंतरतम में तुम.....!
वेदिका...१४/११/०७ २:४५ AM
18 नव॰ 2009
जाने हमने हाय इसका क्या बिगाड़ा......!
बेहिसाब बारिश
तिस पर निर्दयी जाड़ा
जाने हमने हाय
इसका क्या बिगाड़ा
इस कदर बरसा ये बादल
भीग गयी रूह पूरी
निचुड़ गया रोम-रोम
उठ गयी है यूँ फरुरी
डरते कांपते ही बीता
पिछला पूरा ही पखवाड़ा
देखना एक दिन ही
पूरा हमें डूब जाना है
कुछ नहीं जायेगा संग
सब यहीं छूट जाना है
दे रहा देखो बुलावा
काले बादल का नगाड़ा
बेहिसाब बारिश
तिस पर निर्दयी जाड़ा
जाने हमने हाय
इसका क्या बिगाड़ा
तिस पर निर्दयी जाड़ा
जाने हमने हाय
इसका क्या बिगाड़ा
इस कदर बरसा ये बादल
भीग गयी रूह पूरी
निचुड़ गया रोम-रोम
उठ गयी है यूँ फरुरी
डरते कांपते ही बीता
पिछला पूरा ही पखवाड़ा
देखना एक दिन ही
पूरा हमें डूब जाना है
कुछ नहीं जायेगा संग
सब यहीं छूट जाना है
दे रहा देखो बुलावा
काले बादल का नगाड़ा
बेहिसाब बारिश
तिस पर निर्दयी जाड़ा
जाने हमने हाय
इसका क्या बिगाड़ा
वेदिका- 12:58 am 18-11-2009
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