गीतिका 'वेदिका
"फागुन का हरकारा”
भंग छने रंग घने
फागुन का हरकारा
टेसू सा लौह रंग
पीली सरसों के संग
सब रंग काम के है
कोई नही नाकारा
बौर भरीं साखें है
नशे भरी आँखें है
होली की ठिठोली में
चित्त हुआ मतवारा
जित देखो धूम मची
टोलियों को घूम मची
कोई न बेरंग आज
रंग रंगा जग सारा
मुठी भर गुलाल लो
दुश्मनी पे डाल दो
हुयी बैर प्रीत, बुरा;
मानो नही यह नारा
मन महके तन महके
वन औ उपवन महके
महके धरा औ गगन
औ गगन का हर तारा
जीजा है साली है
देवर है भाभी है
सात रंग रंगों को
रंगों ने रंग डारा
चार अच्छे कच्चे रंग
प्रीत के दो सच्चे रंग
निरख निरख रंगों को
तन हारा मन हारा
8/03/2013 1:45pm
"मुठी भर गुलाल लो
जवाब देंहटाएंदुश्मनी पे डाल दो......
आभार आदरणीय राकेश कौशिक जी
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर लिखती हे आप बस यु हु लिखते रहे इक दिन आप का नाम महान लेखको में सुमार होगा
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार रोहित जी! बहुत ख़ुशी मिली आपने जो दुआ दी।
हटाएंसादर
किसी तरह आप के ब्लोग्स पर आना हुआ बहुत खुश हु की यहाँ इतनी सुन्दर कविताए पड़ने को मिली आशा हे की कुछ और पड़ने को मिलेगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपका तहे दिल से शुक्रिया .. आपकी प्रतिक्रिया से मनोबल बढ़ा। समय समय पर आप मेरे आपके ब्लॉग का भ्रमण करते रहिये। आपको अवश्य ही और रचनाएँ मिलेंगी।
हटाएंसादर सुंदर वर्मा जी!
बहुत सुन्दर कविताए हे आप की हर कविता इक से इक बढ़ कर किसी में कोई कमी नही
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए धन्यवाद
धन्यवाद आदरणीय T जी! आपका अत्यंत आभार! ये तो आपका बड़प्पन है की आपको कोई कमी नही दिखायी दी।
हटाएंसादर
होली आने वाली है, इस का आभास करा दिया.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय! आपकी सराहना से कलम को प्रोत्साहन मिलता है। और आपने पिछले पोस्ट को नही देख पाया था वहा मैंने लिंक दिया है please उसे पढ़ कर मुझे कृतार्थ करे! सादर गीतिका 'वेदिका'
हटाएंचार अच्छे कच्चे रंग
जवाब देंहटाएंप्रीत के दो सच्चे रंग
निरख निरख रंगों को
तन हारा मन हारा
wow bahut achchha likhti hai aap.. likhte rahiye..dhnywad :))))))
आभार आपका आदरणीय!
हटाएंसादर गीतिका 'वेदिका'