मेरे साथी ....जिन्होंने मेरी रचनाओं को प्रोत्साहित किया ...धन्यवाद

शुभ-भ्रमण

नमस्कार! आपका स्वागत है यहाँ इस ब्लॉग पर..... आपके आने से मेरा ब्लॉग धन्य हो गया| आप ने रचनाएँ पढ़ी तो रचनाएँ भी धन्य हो गयी| आप इन रचनाओं पर जो भी मत देंगे वो आपका अपना है, मै स्वागत करती हूँ आपके विचारों का बिना किसी छेड़-खानी के!

शुभ-भ्रमण

11 फ़र॰ 2010

कोई आया सा है ...

हुयी है दस्तक   दिलो- दिमाग में
देख लूँ बाहर    कोई आया सा  है

हर पहर   ये साथ कोई चल रहा 
कौन है जैसे     मिरा साया सा है

छूटने पीछे लगे          अपने मिरे
क्यूँ किसी इक गैर को पाया सा है

कोई छू न सके         न देखे मुझे
किस तरह का ये खुदा साया सा है

काम उसको सोचने के सिवा क्या
वक्त चारों पहर     का ज़ाया सा है

-वेदिका

11 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी11/2/10, 5:13 pm

    सार्थक प्रयास

    जवाब देंहटाएं
  2. इस कविता से मुझे वा लड़की दिखाई देती है जो अपने प्रियतम के बारे में सोच रही है...या तो वो जो अपने आने वाले अपने शरीर के ही हिस्से के बारे में सोच रही है.

    जवाब देंहटाएं
  3. आप के ब्लॉग को की चर्चा तेताला पर की है देखे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084
    http://tetalaa.blogspot.com/2010/02/blog-post_7641.html

    जवाब देंहटाएं
  4. जी हा हम आये थे !

    शेखर कुमावत

    जवाब देंहटाएं
  5. बेह्तरीन जज़्बात

    जवाब देंहटाएं
  6. काम उसको सोचने के सिवा क्या
    वक्त चारों पहर का ज़ाया सा है
    उमदा अभिव्यक्ति शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  7. काम उसको सोचने के सिवा क्या
    वक्त चारों पहर का ज़ाया सा है ..

    बहुत अच्छा लिखा ........ पर उनको सोचना वक़्त जाया करना नही .... वो छाए रहें तो आसानी से काट जाता है वक़्त .....

    जवाब देंहटाएं
  8. main to bas itnaa hi kah paaungaa....kyaa baat....kyaa baat.....kyaa baat......!!

    जवाब देंहटाएं
  9. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं

विचार है डोरी जैसे और ब्लॉग है रथ
टीप करिये कुछ इस तरह कि खुले सत-पथ