हे! सहोदर!
तुम वही ना
जो रहे उसी उदर में
जिसमें कि मै
उसी पदार्थ से पोषित
जिससे कि मै,
फिर क्यों नहीं कोमल भावनाएं
तुम्हारी जैसे कि मेरी,
फिर क्यों कठोर शब्द
तेरे क्यों नहीं मेरे,
क्यों मैं पल पल आहत तेरे बोलों से ,
क्यों जमता मेरा दौड़ता लहू ,
क्यों ख़त्म होती मेरी खुशियाँ
तेरे उपालम्भों से,
क्यों हर वक्त मुझे नीचा दिखाने की होड़,
जबकि मै तेरी प्रतिस्पर्धी तो नहीं
तब भी चाक होता ह्रदय जब
तेरे इस व्यव्हार से माता - पिता भी
रहते तेरे ही पाले में
हे! भाई!
राखी के अवसर आते ही
आगे करते हाथ केवल इस हेतु
की कोई तुम्हे ताना न दे
की तेरी सूनी कलाई
झुकते तो नहीं कभी
जिद्दी हठीले और छोटे उम्र में तुम
फिर भी ये आशीर्वचन तेरे ही लिए
जीते रहो !!!
एक बेटी और बहन कि वेदना को बहुत सुन्दर शब्दों में ढाला है ...
जवाब देंहटाएंतब भी चाक होता ह्रदय जब
तेरे इस व्यव्हार से माता - पिता भी
रहते तेरे ही पाले में
ये पंक्तियाँ विशेष कर अच्छी लगीं
गंभीर कविता है
जवाब देंहटाएंnice rachna
जवाब देंहटाएंकी कोई तुम्हें ताना ना दे... गुड
जवाब देंहटाएं