मेरे साथी ....जिन्होंने मेरी रचनाओं को प्रोत्साहित किया ...धन्यवाद

शुभ-भ्रमण

नमस्कार! आपका स्वागत है यहाँ इस ब्लॉग पर..... आपके आने से मेरा ब्लॉग धन्य हो गया| आप ने रचनाएँ पढ़ी तो रचनाएँ भी धन्य हो गयी| आप इन रचनाओं पर जो भी मत देंगे वो आपका अपना है, मै स्वागत करती हूँ आपके विचारों का बिना किसी छेड़-खानी के!

शुभ-भ्रमण

4 जुल॰ 2013

सार/ललित

सार/ललित छंद १६ व १२ मात्रा पर यति का विधान, पदांत गुरु गुरु अर्थात s s से,, छन्न पकैया पर प्रथम प्रयास / क्रिकेट विषय
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छन्न पकैया छन्न पकैया, टॉस करेगा सिक्का
कौन चलेगा पहली चाली, हो जायेगा पक्का ।। १

छन्न पकैया छन्न पकैया, कंदुक लाली लाली
इक निशानची ठोकर मारे, गिल्ली भरे उछाली।। २

छन्न पकैया छन्न पकैया, बादल छटते जाये
आँखों में है धूर झोंकते, धन भर घर ले आये ।। ३

छन्न पकैया छन्न पकैया, गिरा राज का कुंदा
हाथ हथकड़ी पांव बेड़ियाँ, गले पड़ गया फंदा ।। ४

छन्न पकैया छन्न पकैया, चले काठ का बल्ला
गेंद गयी सीमा बाहर ते, दीदों में है हल्ला ।। ५

छन्न पकैया छन्न पकैया, तू जीती या हारी
ठंडा बेचन हारों को तो, प्यारी है रिजगारी ।। ६

छन्न पकैया छन्न पकैया, अब प्रेशर है भारी
गुट्ट्म गोल दना दन सरपट, दौड़ी जो दे मारी ।। ७

                                                          गीतिका 'वेदिका'

26 जून 2013

हिन्द की सेना को समर्पित -मुक्तक





हिन्द की सेना को समर्पित मुक्तक १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२

यही सच आज मानवता का तुम वरदान हे! सेना 
कि तुम विपदा में आये आदमी की जान हे! सेना 
कि शिव तो एक जो कैलाश में चुपचाप बैठे है 
कि तुम हो सत्य सुंदर और शिव भगवान् हे! सेना 




                                           -गीतिका वेदिका

8 जून 2013

एक मुक्तक इंसानियत के लिए


वज्न  2212/2212/2212/22 



इंसान बन इंसानियत का दम भरे जाओ

इंसान हो इंसान की पीड़ा हरे जाओ

इंसान में इंसानियत को जिन्दा रहने दो

पशुता कलंकित कर न दे इतना डरे जाओ 

                                         -गीतिका 'वेदिका'

                                           8/6/2013 12:10 पूर्वान्ह  

5 जून 2013

मद्य पान निषेध

मनोरमण छंद  जो कि १६ मात्राओं से बनता है। बुन्देली भाषा की प्रस्तुति आपके सम्मुख है 


कहने में सकुचाय सुमनिया 
पियो जो दारू प्यारे पिया 
जले गृहस्थी संग जले जिया 
दारू ने सर्वस्व है लिया 

दवा नही रे  है ये  दारू
है ये सब घर बार बिगारु 
बर्बादी पे भये उतारू 
तुम नस्सू हम जीव जुझारू 

                  गीतिका 'वेदिका' 
                   ११ मई २०१३ ११ : ५७ पूर्वान्ह 

3 मई 2013

डमरू घनाक्षरी / गीतिका 'वेदिका'

डमरू घनाक्षरी अर्थात बिना मात्रा वाला छंद
३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में

लह कत दह कत, मनस पवन सम
धक् धक् धड़कन, धड कत परबस
डगमग डगमग, सजन अयन पथ,
बहकत हर पग, मन जस कस तस

बस मन तरसत, बस मन पर घर
अयन जतन तज, अचरज घर हँस
चलत चलत पथ, सरस सरस पथ,
सजन सजन पथ, हरस हरस हँस
                              गीतिका 'वेदिका'
                             १ : १ ६ अपरान्ह
                        १ / ० ५ / २ ० १ ३

30 अप्रैल 2013

ये जहाँ बदल रहा है, // गज़ल



1121 2122 1121 2122
फइलातु फाइलातुन फइलातु फाइलातुन

ये जहाँ बदल रहा है, मेरी जाँ बदल न जाये
तेरा गर करम न हो तो, मेरी साँस जल न जाये ॥


ये बता दो आज जाना, कि कहाँ तेरा निशाना
जो बदल गये हो तुम तो, कहीं बात टल न जाये ॥


न वफ़ा ये जानता है, मेरा दिल बड़ा फ़रेबी
ये मुझे है डर सनम का, कि कहीं बदल न जाये ॥


तेरी जुल्फ़ हैं घटायें, जो पलक उठे तो दिन हो
'न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये' ॥


मेरा दिल लगा तुझी से, तेरा दिल है तीसरे पे
तेरा इंतज़ार जब तक, मेरा दम निकल न जाये ॥

                                                                        गीतिका 'वेदिका'
                                                                      27/04/2013 8:29 अपरान्ह 
("न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये " ....मिसरा-ए-तरह..)

24 अप्रैल 2013

भारतीय सनातन छंद

आदरणीय मित्रगण  ....सादर नमन!



दिये गये चित्र के अनुसार, को ध्यान में रख कर लिखी रचनाएँ अलग अलग विधा में रचीं गयी है, जिनके मापदण्ड भी निम्नलिखित है,कितनी सटीक चित्रण है ..ये पाठक मित्रों की आलोचना पर निर्भर है
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प्रथम प्रस्तुति  =>
कामरूप छंद
कामरूप छंद जिसमे चार चरण होते है , प्रत्येक में ९,७,१० मात्राओं पर यतिहोती है , चरणान्त गुरु-लघु से होता है

छातिया लेकर / वीर जवान / आय सीना तान
देश की माटी / की है माँग / तन व मन कुर्बान
इसी माटी से / बना है तन / इस धूरि की आन
तन से दुबला / अहा गबरू / मन धीर बलवान ..................गीतिका 'वेदिका'

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द्वतीय प्रस्तुति  =>
चतुष्पदी छंद या चौपाई 
चतुष्पदी छंद के रूप में, बुंदेलखंड के मानक कवि श्रेष्ठ ईसुरी की बुन्देली भाषा से प्रेरित है 

चौपाई छंद .....चार चरण ....प्रत्येक पद में सोलह मात्राएँ

उदाहरण ----"  जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
                    जय कपीस तिहूँ लोक उजागर ""


१ )
अम्मा कत्ती दत के खा लो
पी लो पानी और चबा लो
सबई नाज व दालें सबरी
करो अंकुरण खालो सगरी


२ )
सुनी लेते अम्मा की बात
फिर तोइ होते अपने ठाठ
दुबरे तन ना ऐसे होते
भर्ती में काये खों रोते


३ )
ई में अगर चयन हो जाये
माता को खुश मन हो जाये
फिर ना बाबू गारी देंहें
कक्का भी हाथन में लेंहें ............... गीतिका 'वेदिका'

विरह क्या आत्म दाह होता ...!

विरह क्या
आत्म दाह होता ...!

अश्रु अतिथि से आते है
स्वागत हे! नैना गाते है
हा ! पीड़ा, हा ! करुण रागिनी
सबको दूँ न्योता ...!

विरह क्या आत्म दाह होता ...!

स्मृतियाँ फेरे लेती है
घड़ी घड़ी घेरे लेतीं है
हा ! विदाई, हा ! वियोग; इस
क्षण, शुभ विवाह होता ...!

विरह क्या, आत्म दाह होता ...! 

                       गीतिका 'वेदिका'
                       11/04/06 6:45 अपरान्ह 

23 अप्रैल 2013

तुझे पाया बेवफ़ा

जब भी पाया तुझको

कर गया चाक ज़िगर
तेरा साया बेवफ़ा

दिल है नादान सनम
तुझ पर आया बेवफ़ा

हम तो तेरे ही बने
तू पराया बेवफ़ा

तोड़ी सब कसमें क्यों
या ख़ुदाया बेवफ़ा
                                                                                       ...गीतिका 'वेदिका'

17 अप्रैल 2013

सुमरि होरी रे! / लम्टेरा विधा

बुन्देली क्षेत्र में फाग के अवसर पर पुरुष और महिलाओं के समूह द्वारा गाया जाने वाला गीत

 सुमरि होरी रे! / लम्टेरा विधा

सुमरि  होरी रे!
आई होली के लेके रंग बिरंगे अनुराग रे
सुमरि होरी रे!

कौना के शिव कैलाश बसे जू हो
कौना के श्याम बसे वृन्दावन रे
सुमरि होरी रे!

राधा चली घट रंग भरो जू 
गौरा चली ले के रंग अबीर को थार रे
सुमरी होरी रे!

कौना सी  सुंदर नारी वन में बसे
संगे बसे लाला लखन , राम भरतार रे
सुमरि  होरी  रे!

राम भगत की रंग रंगीली होली
हनुमत करे लाल सिंदूर को सिंगार रे
सुमरि होरी रे!

रखो वेदिका लाज, कलम खों रंग दो 
संग मिले एक रंग पिया जी का प्यार रे!
सुमरि होरी रे!

गीतिका 'वेदिका'
21-03-2013....11:19 अपरान्ह

18 मार्च 2013

"और कहूँ क्या "



मेरे दिल की

गहराइयों में तुम

आये सौंधी हवा बन के

महका गये सुगंध

आंगन भर हाय राम

रोम रोम

रोमांचित करते

सुध बुध भूली

सब जग भूली  

याद रहे बस तुम 

लेकिन चतुर साथी

जाते जाते छोड़ गये तूफान

घना और भीषण हाय

सब अस्त-व्यस्त 

और कहूँ क्या

शेष नहीं कुछ भी 

शेष नही कुछ भी ...............गीतिका 'वेदिका'

                                          १८ -०३ -२ ० १३    ०३ :२२  अपरान्ह 

12 मार्च 2013

"फागुन का हरकारा”


  गीतिका 'वेदिका   

 "फागुन का हरकारा”


भंग छने रंग घने
फागुन का हरकारा

टेसू सा लौह रंग
पीली सरसों के संग
सब रंग काम के है
 कोई नही नाकारा

बौर भरीं साखें है
नशे भरी आँखें है
होली की ठिठोली में
 चित्त हुआ मतवारा

जित देखो धूम मची
टोलियों को घूम मची
कोई न बेरंग आज
रंग रंगा जग सारा

मुठी भर गुलाल लो
दुश्मनी पे डाल दो
हुयी बैर प्रीत, बुरा;
मानो नही यह नारा

मन महके तन महके
वन औ उपवन महके
महके धरा औ गगन
औ गगन का हर तारा

जीजा है साली है
देवर है भाभी है
सात रंग रंगों को
रंगों ने रंग  डारा

चार अच्छे कच्चे रंग
प्रीत के दो सच्चे रंग
निरख निरख रंगों को
तन हारा मन हारा

          8/03/2013 1:45pm

29 जन॰ 2013

मन मन ही मन में घुलता है



चुप चाप समाधि सी बैठूं
जीवन क्या यही शिथिलता है
 
मन सदा अशांत ही रहता है
मन मन ही मन में घुलता है
 

खोकर अपना नन्हा सा शिशु
न प्यार तुम्हारा पाया है
कैसे तुम पत्थर दिल साथी
मन में भरी विकलता है
 
खाना पीना खा लूँ सो लूँ
अपना रोना किसको रो लूँ
 
न कोई तत्परता अब
न कोई चंचलता है
 चहुँ और न कोई आश्वाशन
मन समझे न कोई भाषा
कैसे मन को समझाऊं मै
मेरे अंतर व्याकुलता है

17 सित॰ 2012

"मेरे घर आये है साजन"


मेरे घर आये है साजन
आँगन निखर गया

बरसी थी नैनो की बदली
धो गयी सब काजल और कजली
रोग शोक दुःख पीड़ा
जाने किधर गया

हम मिलकर तुमसे हरसाए
सबको अपने सजन दिखाए
खूब खूब खुद पे इतराए
विरह वेदना का रोना
सब बिसर गया


1 जून 2012

गजल सा ये चेहरा...!

किसी फूल की पंखुरी से मुलायम
बहुत खूबसूरत गजल सा ये चेहरा

ये आँखें है या मुस्कराती दो कलियाँ
किसी झील में इक कमल सा ये चेहरा 

30 दिस॰ 2011

तेरे उर का दीप सजन


नही तिमिरमय तू
तेरे उर का मै दीप सजन

धरो न यूँ मन में संताप
घुनो न यूँ अपने में आप
किस हेतु यह तेरा प्रलाप
सुनो अंकुर होकर इक बीज
पाता है निज यौवन
तेरे उर का मै दीप सजन

तू है दीपक मै हूँ बाती
तू मेरे संग मै संगाती
जन्मों से मै तेरी थाती
करो तुम बस इतना विश्वास
हम तुम है केवल दर्पन
तेरे उर का मै दीप सजन

विरह की चार घड़ी भर शेष
इक दूरी ये मुआ विदेस
मिटेगा उर में भरा कलेस
खोल दूंगी ये नयन मेरे
जायेगा ही ये तिमिर सघन
तेरे उर का मै दीप सजन

27 मार्च 2011

"आजाओ ना मीत एक मुस्कान लिए "

आजाओ ना मीत
एक मुस्कान लिए


दीवारों पे जाले है
आँखों के घेरे काले है
रूखे मेरे निवाले है
बैठी हूँ आँखों में
भरी थकान लिए


द्वार पड़े वे झाड़
हटा दो
आओ निकट
दूरियां घटा दो
आजाओ आशाओं
भरा जहान लिए

बंद पड़ी खिड़की खोलोगे
ताज़ी सी खुशबु घोलोगे
धीरे से तुम जब बोलोगे
आँखे रो देंगी
तेरा ही ध्यान लिए


20 मार्च 2011

पिय संग होली


" प्रकृति ने होली रच डाली 


कहीं पे केशर कहीं पे लाली 


उमड़ घुमड़ मुस्काता है मन 


पिय संग होली हुयी निराली "

11 दिस॰ 2010

मेरे घर आये है साजन

मेरे घर आये है साजन
आँगन निखर गया

बरसी थी नैनो की बदली
धो गयी सब काजल और कजली
रोग शोक दुःख पीड़ा
जाने किधर गया

हम मिलकर तुमसे हरसाए
सबको अपने सजन दिखाए
खूब खूब खुद पे इतराए
विरह वेदना का रोना
सब बिसर गया